गुरुवार, 12 मार्च 2015

भक्त सदन​

एक सदन नाम के कसाई थे, मांस बेचते थे, पर भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी एक दिन एक नदी के किनारे से जा रहें थे रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिल गया.उन्हें अच्छा लगा उन्होंने सोचा बड़ा अच्छा पत्थर है क्यों ना में इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करूं 

सदन परम्परागत मांस का व्यापार करता था, पर भावना यह थी कि जीव की हत्या नहीं करूँगा। दूसरों से मांस लाकर बेचता था । इसके पास एक शालिगराम​ की बटिया थी वो यह नहीं जानता था की यह शालिगराम​हैं । वह उसे बाँट समझकर मांस तोलता था । एक दिन एक साधु उस शालिगराम की बटिया को देखकर बोले - भक्त यह तू मुझे दे दो। सदन ने अपना वह बाँट साधु को देदिया । साधु उस बटिया को आश्रम में लेजाकर विधिवत पूजा करने लगे । परन्तु भगवान को यह पूजा पसन्द नहीं आई और वे स्वप्न में साधु से बोले - हे महात्मा ! तुम मुझे सदन के घर पहुँचा दो मैं उसकी सच्चाई से प्रसन्न हूँ । सुबह साधु जी वह बटिया लेकर सदन के पास पहुँचे और बोले - भाई ! यह अपना बाँट लो यह तो तुम्हारे पास ही रहना चाहते हैं, अब चाहे तुम इन्हें पूजो और चाहे इनसे मांस तोलो । प्रभु तो तुमसे जी रीझे हैं । 

यह सुनकर सदन का हृदय भर आया । वह प्रेम में इतना डूब गया कि शरीर का भी होश न रहा । सावधान होने पर शालिगराम की बटिया को हृदय से बाँध लिया और तीथ यात्रा को चल दिया । 


कार्य कोई भी हो पर मन पवित्र है जिसका उसे मोक्ष का मार्ग मिल ही जाता है । भक्ति भगवान को प्राणों से भी अधिक प्यारी है और भगवान, भक्ति के द्वारा नीच के घर भी चले जाते हैं ।